Tuesday, January 7, 2014

AAP के नेता रैन बसेरा जाने से पहले न्यूज चैनल के दफ्तर फोन करते हैं…

महेंद्र श्रीवास्तव
रोजाना कुछ ऐसी बातें होती हैं कि खुद को रोक नहीं पाता और चला आता हूं आप सबकी अदालत में एक नई जानकारी के साथ। कुछ मित्रों की सलाह थी कि कुछ दिन केजरीवाल साहब को काम करने दीजिए, फिर उनकी समीक्षा की जाएगी। मैने सोचा बात भी सही है, मौका तो मिलना ही चाहिए। लेकिन रोज कुछ ना कुछ ऐसा हो रहा है, जिससे मजबूर होकर इनके बारे में लिखना जरूरी हो जाता है। अब देखिए ….”आप “के मंत्री रात को रैन बसेरा की हालत देखने जाने के पहले इलेक्ट्रानिक मीडिया के दफ्तर में फोन करते हैं। पूछते हैं कि नाइट शिफ्ट का रिपोर्टर आफिस आ गया है क्या ? जब आफिस से बताया जाता है कि हां आ गया है, तो कहा जाता है कि उसे भेज दीजिए, मैं रैन बसेरा देखने जा रहा हूं। आफिस से जवाब मिलता है कि नहीं आज तो रिपोर्टर कहीं और बिजी है, तो बताया जाता है कि आज तो जरूर भेज दीजिए, क्योंकि एक्सक्लूसिव खबर मिलेगी ! जब मंत्री एक्सक्लूसिव खबर की बात करें तो तमाम चैनलों के रिपोर्टर मौके पर पहुंच ही जाते हैं। रिपोर्टरों के मौके पर आ जाने के बाद मंत्री का चेला मंत्री को बताता है कि आ जाइये, रिपोर्टर पहुंच गए हैं। थोड़ी देर में ही मंत्री पहुंच जाते हैं और रिपोर्टर से पूछते हैं कि आप सबका कैमरा चालू हो गया है, शुरू करूं मौके मुआयना। रिपोर्टर कहते हैं हां सर ! हम सब रेडी हैं। अब ” आप “के मंत्री जी रैन बसेरा के अंदर जाते हैं, यहां लोगों की हालत देखते हैं और लोगों से उनकी तकलीफ सुनते हैं। 15 मिनट बाद जब मंत्री जी वापस लौटने के लिए निकलने लगते हैं तो एक रिपोर्टर कहता है, सर मजा नहीं आया। ये तो आप कल भी कर चुके थे, मुझे तो लगता नहीं कि चैनल पर आज दोबारा ये कहानी चल पाएगी, क्योंकि इसमें कुछ नया तो है नहीं। रिपोर्टर सलाह देते हैं कि खबर चलवानी है तो … चलिए किसी अफसर के घर और उन्हें रात में ही जगाकर कैमरे के सामने डांटिए..। मंत्री मुस्कुराने लगते हैं, रिपोर्टरों से कहते हैं ..नहीं …नहीं.. , ज्यादा हो जाएगा। फिर रिपोर्टर सलाह देते हैं कि अच्छा अफसर को फोन मिला लीजिए और उसे जोर-जोर डांटिए । हम लोग यही शूट कर लेते हैं। बेचारे मंत्री जी अब फंस गए, उन्होंने कहा कि इतनी रात में अफसर को फोन मिलाना ठीक नहीं है। तब एक बड़े चैनल के रिपोर्टर ने सलाह दी, अरे सर ..चलिए फोन मिलाइये मत, बस मोबाइल को कान के पास लगाकर डांट – डपट कर दीजिए। कैमरे पर ये थोड़ी दिखाई पड़ेगा कि बात किससे हो रही है। मंत्री जी ये करने के लिए तत्काल तैयार हो गए। मंत्री ने कहा चलिए जी, कैमरा चालू कीजिए, हम अभी फोन पर अफसरों को गरम करते है। एक मिनट में मंत्री ने मूड बनाया और फिर एक सांस मे लगे अफसर को डांटने। पूरा ड्रामा मंत्री ने इतनी सफाई से की कि बेचारे रिपोर्टर भी बीच में कुछ बोल नहीं पाए। जब मंत्री की बात खत्म हो गई, तब एक कैमरामैन अपने रिपोर्टर से बोला, भाई कुछ भी रिकार्ड नहीं हुआ है, मंत्री जी अंधेरे में ही चालू हो गए। तब सभी रिपोर्टरों ने एक साथ मंत्री से कहा ” सर.. बहुत बढिया था, बस इसी मूड में एक बार और करना होगा, क्योंकि जहां आप खड़े थे.. वहां लाइट कम थी, आप का चेहरा बड़ा काला काला आया है, चेहरे पर गुस्सा दिखाई भी नहीं दे रहा है। मंत्री ने पूछा फिर क्या करें ? कुछ नहीं बस अब आपको वहां खड़ा करते हैं, जहां थोड़ी लाइट होगी, इससे आपका चेहरा चमकता हुआ आएगा और लाइट में चेहरे पर गुस्सा भी साफ दिखाई देगा। बस फिर क्या, मंत्री जी ने दोबारा फोन पर अफसर को डांट लगा दी । चलते-चलते सब से पूछ लिया अब ठीक है ना, कोई दिक्कत तो नहीं। रिपोर्टरों की तरफ से आवाज आई, नहीं सर, अब बिल्कुल ठीक है। चलिए आप लोग भी जाइए आराम कीजिए, हम भी जा रहे हैं आराम करने। रैन बसेरों के औचक निरीक्षण का यही असली चेहरा है, वरना सप्ताह भर पहले मंत्री ने कहाकि 48 घंटे के भीतर दिल्ली मे 45 रैन बसेरा बनकर तैयार हो जाना चाहिए। अगर तैयार नहीं हुआ तो अफसरों की खैर नहीं। अब क्या बताए यहां 48 घंटा नहीं 148 घंटा बीत गया है, लेकिन दिल्ली में कोई नया रैन बसेरा नहीं बनाया गया। मैं जानना चाहता हूं कि जो मंत्री रात मे मोबाइल पर अफसरों को गरम करते हुए खुद को शूट करा रहे थे, क्या कोई जवाब है उनके पास ? मंत्री जी बताएंगे कि किस अफसर के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई ? दरअसल सच्चाई ये है कि इस समय दिल्ली में बहुत ही टुच्ची राजनीति चल रही है। कहा जा रहा है मंत्री लाल बत्ती नहीं लेगें। अरे भाई लाल बत्ती लोगे तो आम आदमी का क्या नुकसान हो जाएगा और नहीं लेने से उसे क्या फायदा हो जाएगा। पगलाई इलेक्ट्रानिक मीडिया भी पूरे दिन इसी पर चर्चा कर रही है। बात मंत्रियों की सुरक्षा की होने लगती है, कुल मिलाकर छह तो मंत्री है, वो सुरक्षा नहीं लेगें, इससे आम आदमी पर क्या फर्क पडने वाला है। हम कुछ नहीं कहेंगे, आप सुरक्षा भी लीजिए, गाड़ी भी लीजिए, बत्ती भी लीजिए, बंगला भी लीजिए.. मसलन मंत्री के तौर पर जो सुविधा मिलती है, सब ले लीजिए, लेकिन दिल्ली के लिए कुछ काम कीजिए। हल्के बयानों से कुछ नहीं होने वाला है, ये दिल्ली है, प्लीज इसे दिल्ली ही रहने दीजिए। यहां बात वो होनी चाहिए जिससे आम आदमी की मुश्किलें आसान हो, लेकिन आज बात वो की जा रही है, जिससे आम जनता खुश हो और ताली बजाए। ठीक उसी तरह जैसे रामलीला के दौरान जोकर के आने पर लोग ताली बजाते हैं। दिल्ली की आज सच्चाई ये है कि अगर पब्लिक ट्रांसपोर्ट की ही चर्चा कर लें, तो इस समय आँटो वाले बेलगाम हो गए हैं। मनमानी किराया तो आम बात रही है, अब वो सवारी के साथ बेहूदगी भी करने लगे हैं। मसला क्या है, बस आम आदमी की सरकार है, लिहाजा अब वो कुछ भी करने को आजाद हैं, उनका कोई कुछ नहीं कर सकता। ये मैसेज है आज दिल्ली में। खैर धीऱे धीरे ही सही, लेकिन सब कुछ अब सामने आने लगा है। (लेखक के ब्लॉग ‘आधा सच’ से साभार)

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