Saturday, February 9, 2013
Ravi Varta - आस्था का महाकुम्भ
आप सभी को आपके अपने रवि किशन का प्रणाम . कोच्ची की खुबसूरत सुबह का आनंद लेते हुए आपसे मुखातिब हूँ . आज यहाँ सी सी एल में हमारे भोजपुरी दबंग का मुकाबला तमिल फिल्म इंडसट्रीज़ की टीम से होना है . सी सी एल का यह पहला मैच भी है, वैसे खेल भी सिनेमा की ही तरह मनोरंजन का एक साधन है , तमिल टीम दो बार की विजेता टीम है और हमें इस बार उनको उनके पहले ही मैच में हराना है , मैं बहुत ज्यादा प्रेक्टिस तो नहीं कर पाया हूँ लेकिन भोजपुरी दबंग का हर दबंग खेल में माहिर है और हमारी दबंगई कल खेल के मैदान पर दिखेगा . परिणाम चाहे जो भी हो , लेकिन हम अपना पहला मैच जीतने के लिए जी जान लगा देंगे . वैसे भी आप लोगो की शुभकामनाये हमारे साथ है . अब बात करते हैं हमारी आस्था के प्रतीक महाकुम्भ की . पूरी दुनिया में इन दिनों महाकुम्भ की ही चर्चा है . इलाहाबाद की पावन नगरी में इन दिनों हर तरफ जन सैलाब ही दिख रहा है . महाकुम्भ हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है जो हर १२ साल बाद आता है . दुनिया के इस सबसे बड़े मेले के बारे में खगोल शास्त्रियों का मानना है की जब सूर्य और चन्द्रमाँ, वृश्चिक राशी में, और वृहस्पति, मेष राशी में प्रवेश करते हैं तब महाकुम्भ की शुरुवात होती है . इस साल भी यह अद्भूत संयोग बना है . कल कोच्ची से वापस लौटने के बाद एक चैनल के शो पुलिस फ़ाइल की शूटिंग कर बनारस जाऊंगा , वहाँ एक दो कार्यक्रमों में हिस्सा लेकर अपने गाँव जौनपुर जाना है .माता पिता का आशीर्वाद लेकर फिर उनके साथ कुम्भ के मेले में जाना है . कुम्भ में स्नान का सुख और फल तब दुगुना हो जाता है जब आप अपने बुजुर्गो के साथ वहाँ जाते हैं . कहा जाता है की आत्मिक शांति और जीवन दर्शन से परिचय करना है तो कुम्भ सबसे सही जगह है, हम इंसान जीवन के हर पहलू को अलग अलग नजरिये से देखते हैं , पर मोह माया से दूर हमारे साधू संत का जीवन के प्रति एक ही नजरिया है वो है शांति का . इंसानी जीवन जहाँ है वहाँ मोह माया का बास है और फिर वहाँ है सुख और दुःख पर जीवन में जहां मोह माया अपना पराया ना हो वहाँ सुख दुःख कभी आ ही नहीं सकता . हर इंसान साधू तो बन नहीं सकता लेकिन उसकी प्रवृति जिसने अपना लिया वो इंसान आम इंसान से ऊपर उठ जाता है . खैर, कुम्भ स्नान का अपना अनुभव मैं आपसे अगले शनिवार शेयर करूँगा . अगले शनिवार फिर आपसे मुलाकात होगी .
आपका
रवि किशन
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