मैं अपने पाँव पर खड़ी होना चाहती हूँ, आत्मनिर्भर बनना चाहती हूँ , यही सोचकर भोजपुरी फिल्म जगत से जुडी और मुझे ख़ुशी है की भोजपुरी ने मुझे अपना लिया। ये वक्तव्य अभिनेत्री अपूर्वा बिट द्वारा दिया गया है। एक भेंटवार्ता में उनसे पूछा गया कि ऐसी सोच के पीछे उनका मंतव्य क्या है- नारी की स्वतंत्रता अथवा स्वच्छंदता??
अपूर्वा ने एक राजनेत्री की तरह सधा सा उत्तर दिया। उसने कहा, -किसी लड़की या स्त्री के आत्म-निर्भर होने का यह कतई अर्थ नहीं होता कि वह निर्बंध होना चाहती है या फिर मनमानी करने के लिए ऐसा कर रही है। लड़कियाँ तो हमेशा परिवार को लेकर चिंतित रहा करती हैं। ये कुबुद्धि कुछ लड़कों-पुरूषों में आती है, हम तो बिल्कुल ही ऐसा नहीं सोचतीं!
आप भोजपुरी सिनेमा की स्थापित अभिनेत्री हैं; फिर इस तरह की बात का ख्याल ही कैसे आया?
इसलिये कि (हँस पड़ती है) मेरी आने वाली फिल्म -सेटिंगबाज़’ में मैं एक ऐसी ही लड़की बनी हूँ। वह पढ़ी-लिखी है। उसकी महत्वाकांक्षा बड़ी ऊँची है। वह चैखट की देहरी तक खूँटे से बंधी गाय नहीं बनना चाहती। वह परिवार के लिए बोझ नहीं, प्रेरणा बनना चाहती है।
जैसा आप निजी-जीवन में हैं?
हाँ,.... कह सकते हैं। लेकिन, फिल्म में वह जितनी नटखट है, उतना हंगामा मैं कहाँ अपने घर में मचाती हूँ? पर, मैं भी बैठे-ढाले बैठने में यकीन नहीं रखती।
सेटिंगबाज’ के बारे में थोड़ा और विस्तार से बताएँ?
‘सेटिंगबाज’ में राहुल सिंह मेरे हीरो हैं। वह गाँव के एक सीधे साधे युवक हैं। मैं बड़े घर की बेटी हूँ और सुशिक्षिता हूँ। वह सीधे मेरे तरफ देखने की हिम्मत नहीं करते, बस सपना देखते रहते हैं कि मैं उनके प्यार में गिरफ्तार हो गयी। बड़ी मनोरंजक फिल्म है। साकेत यादव फिल्म के निर्देशक हैं। गीता बिट निर्मात्री हैं। संतोषपुरी का गीत-संगीत कर्णप्रिय है। बबन यादव, समर्थ चतुर्वेदी नकारात्मक भूमिका में हैं। मनेाज टाईगर, प्रकाश जैस भी हैं।
सेटिंगबाज’ के बाद क्या है ?
जगदीश शर्मा (निर्देशक) की एक्शन थ्रिलर ‘‘हथियार’’ है। इसमें मैं एक चुलबुली लड़की हूँ। विराज भट्ट, विशाल मेरे हीरो हैं। फिर इकबाल बख्श की ‘‘हमसे बढ़कर कौन?’’ है। इसमें छः लड़कियाँ हैं। मैं टपोरी गर्ल हूँ।
ये तो आने वाली है, जो आकर चली गयी, वो?
राजीव राय के निर्देशन में बनी ‘‘मेरे साजन तेरे कारण’’। हाल ही में प्रदर्शित हुई है, रविराज दिपु इसमें मेरे साथ थे। सहारा टीवी पर भी कई धाराावाहिकों में काम किया। महुआ टीवी के ‘जुगाड़ूलाल’ में मैं और राहुल साथ-साथ थे। इसके पूर्व निरहुआ जी के साथ बीबी नंबर १ भी रिलीज़ हुई है।
फिर तो इस फिल्म का ‘जुगाड़’ महुआ टीवी पर काम करते वक़्त ही हो गया होगा? या फिर नजदीकियाँ बढ़ीं और सेटिंग हो गयी?
नहीं जी। (शरारती मुस्कान अधरों पर बिखर जाती है।) साकेत यादव को हमारा काम अच्छा लगा और हम फिर साथ-साथ हो गए।
आप तो बंगाल से हैं, सीधे भोजपुरी सिनेमा में कैसे आ गयीं?
सीधे नहीं आयी। बांग्ला फिल्मों के सीनियर और सुपर स्टार प्रसन्नजीत जी के साथ मैंने एक फिल्म की है-‘‘बंधु’’। फिर मुुंबई आ गयी और श्रीधर शेट्टी जी की फिल्म ‘‘खूनी दंगल’’ से भोजपुरी में आ गयी। विनय आनंद मेरे हीरो थे।
इस यात्रा का मूल कारण बंगला फिल्मोद्योग में मनोनुकूल ‘रिस्पाँस’ नहीं मिलना था, क्या?
नहीं, मैं चाहती थी, एक दायरे में नहीं बंधू। राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाना चाहती थी, पर सीधे हिन्दी में प्रवेश थोड़ा रिस्की लगा। अब भोजपुरी ही अकेली एक क्षेत्रीय भाषा है, जो एक चोथाई देश को कवर करती है और मैं आ गई।udaybhagat@gmail.com
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