Friday, June 21, 2013
उफ़ ये त्रासदी ....
आप सभी को आपके अपने रवि किशन का प्रणाम . दो दिन की पटना यात्रा के बाद आज ही मुंबई लौटा हूँ. दरअसल मैं बिहार के एक बड़े रियल इस्टेट कंपनी गृह वाटिका का ब्रांड अम्बेसडर हूँ और इस नाते मुझे उनके एक बड़े प्रोजेक्ट के भूमि पूजन में शरीक होना था . मेरे साथ प्रसिद्द लोकगायिका मालिनी अवस्थी जी भी थी . हमने उस कंपनी के लिए रंगारंग कार्यक्रम भी किये पर मेरा मन थोडा अशांत था , और इसकी वजह है चार धाम में मची वो त्रासदी जिसकी चपेट में हजारो लोग आये हैं . दुनिया के कोने कोने से लोग जहां श्रद्धा का भाव लिए आते हैं वो जगह आज शमशान में तब्दील हो चूका है . चारो और काल के गाल में समा गयी मानवीय शारीर ही दिख रहा है , जिनमे बच्चे बूढ़े जवान सभी है . वहां प्रकृति की विनाशलीला अभी भले ही समाप्त हो चुकी हो पर पूरा इलाका भयानक तबाही की गवाही खुद दे रहा है . . बारिश के बाद मची तबाही में मृतकों की सरकारी संख्या भले ही सौ के पार जा चुकी है, पर हकीकत में यह संख्या काफी अधिक है पहाड़ों पर चार धाम की यात्रा के लिए गये हजारों पर्यटक जहां-तहां फंसे हैं. सभी इसे प्राकृतिक आपदा मान के चल रहे हैं लेकिन क्या ये महज प्राकृतिक आपदा ही है ? नहीं ये सिर्फ प्राकृतिक आपदा नहीं बल्कि इसकी वजह हम खुद ही हैं . उत्तराखंड की इस तबाही के पीछे प्राकृतिक वजहों से कहीं ज्यादा बड़ी भूमिका निभायी है बिन सोचे-समझे किये जानेवाले विकास ने, जिसने वहां के पारिस्थितिकी तंत्र को एक तरह से नष्ट कर दिया है. यह तबाही पूरी तरह मानव निर्मित है. यह सही है कि बारिश औसत से ज्यादा हुई है, लेकिन सिर्फ ज्यादा बारिश से मौजूदा कहर नहीं बरपा है. इसके पीछे दशकों से पहाड़ के साथ मानव द्वारा किये जा रहे खिलवाड़ का हाथ है. भारी बरसात ही नहीं हमारी कारगुजारियां भी इस आपदा के लिए कसूरवार हैं. अगर धरती के संतुलन को भंग किया जायेगा, तो वह बौखलायेगी ही. पिछले लंबे समय से उस पूरे इलाके में कई प्रकार के अनियोजित निमार्ण हो रहे हैं. इसके दुष्प्रभाव से अलकनंदा और भागीरथी जैसी नदियां ही क्या, छोटे-छोटे नदी-नाले भी विध्वंसकारी रूप में आ गये हैं.सड़क चौड़ीकरण के नाम पर बड़े पैमाने पर पहाड़ काट कर उसका मलबा भागीरथी में डाला जा रहा है. बिलकुल नदी के किनारे-किनारे लोगों ने मकान बना लिये, होटल बना लिये. इस तरह से लोग स्वयं नदियों की परिधि में बिना नतीजा सोचे दाखिल हो गये. नदी का उफनना कोई अस्वाभाविक नहीं है, उसकी परिधि में घुसे चले जाना अस्वाभाविक है, जिसका खामियाजा आज भुगतना पड़ा है. शासन-प्रशासन ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया. इस इलाके में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है इसके पहले भी यहाँ भीषण बाढ़ आ चुकी है , अलकनंदा और भागीरथी आज ही नहीं बौखलायीं, पहले भी इनमें कई बार उफान आया है. लेकिन इतनी बड़ी त्रासदी कभी नहीं हुई थी . यह प्रकृति का नियम है की जहां जहाँ उनके साथ खिलवाड़ किया वहाँ वहाँ मौत का तांडव हुआ है . उत्तराखंड में भी कुछ ऐसा ही हुआ है . खैर, हम इंसान को अब सोचना ही चाहिए की हम विकास की राह पर चल रहे हैं या विनास की राह पर . अगले शनिवार फिर आपसे मुलाक़ात होगी .
आपका रवि किशन
udaybhagat@gmail.com
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