जन्मदिन आज ३० मई पर विशेष
कुछ लोग ‘लक’ से रातों रात स्टार बन जाते हैं, तो किसी को चांस मिलता है और वह अचानक सातवें आसमान पर पहुंच जाता है। लेकिन, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें न लक या भाग्य साथ देता है, न ही कोई ऐसा सुनहरा अवसर या चांस नसीब होता है। इनमें से कुछ ऐसे हठी और जीवटवाले होते हैं, जो भाग्य-भरोसे नहीं रहते, न ही किसी अवसर की तलाश में बस यूं ही, दिशाहीन भटकते हैं। ऐसे लोग घोर परिश्रमी होते हैं और कर्म से भाग्य रेखा बदल देने का दम खम रखते हैं।
भोजपुरी सिनेमा के सर्वाधिक चर्चित चरित्र अभिनेता मनोज सिंह टाईगर इसी अपवाद श्रेणी में आते हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कला स्नातक होने के बाद आजमगढ़ (उप्र) के तेजस्वी यूवक मनोज को मुम्बई अने की धुन ने आकाशवाणी के इंद्रजीत त्रिपाठी के पीछे लगा दिया।
यहां आकर वह सागर आर्ट (रामानंद सागर की फिल्म निर्माण कम्पनी) में कार्यरत अनिल त्रिपाठी के सम्पर्क में आए। लेकिन वह परजीवी बनकर नहीं जीना चाहते थे, न ही रामभरोसे भटकना उन्हें गंवारा था। तब ‘फिल्मसिटी’ सप्ताहिकी पूरे जोरों पर थी। वहीं मनोज लग गयें। पत्रिका के मालिक सम्पादक सुरेन्द्र गुप्ता के आॅफिस ब्वाय से कार्यालय प्रभारी तक बनें। वहीं से फिल्मी सम्पर्क बनने लगा। मनोज पृथ्वी थियेटर तक जा पहुंचे। रंगमंच पर मंजने के बाद पंचम राग ग्रुप बनाया और 1999 में प्रथम प्रस्तुति हुई: नेताजी का प्लेटफार्म शो। फिर कर्नाटक भवन (माटुंगा) में अंतर्नाद का मंचन हुआ। यह 2001 की बात है। इस प्रेक्षागृह में अभिनेत्री आयशा जुल्का भी पधारीं थीं। आयशा ने मनोज को व्यक्तिगत रुप से बधाई दीं और अपने कार्यालय आने का निमंत्रण दे डाला। आयशा जुल्का ने मनोज को अपना सर्वश्रेष्ठ देने को तैयार कर दिया। यहां मनोज ने आरंभ किया ‘कभी लक कभी चांस’। और कहना न होगा इस नाट्य प्रस्तुति ने मनोज का लक खोल दिया। इस उद्यमी मनोज को दूसरे मनोज का साथ मिल गया। मनोज ओझा का नाटक ‘मांस का रुदन’ मनोज टाईगर को स्थापित करने का नीव बन गया। उसी मनोज ओझा ने जब भोजपुरी फिल्म शुरु की तो मनोट टाईगर को रजत पट पर उतारना ना भूले। भांषा कभी बाधा नहीं बनती। हिन्दी नाटकों का एक समर्थ अभिनेता भोजपुरी सिनेमा के नए चेहरों में अपनी पहचान पुख्ता करने में सफल हो गया। वह फिल्म थी ‘चलत मुसाफिर मोह लियो रे’। इस फिल्म ने दिनेशलाल यादव व मनोज टाईगर की दोस्ती हुई। दोस्ती ऐसी रंग लाई कि दोनों ने लगभग तीन दर्जन फिल्में साथ-साथ कर डाली। मनोज सबके प्रिय हैं लेकिन दिनेश के साथ उनकी सर्वाधिक फिल्में आई। रवि किशन, विराज भट्ट और खेशारी लाल के साथ भी मनोज की आधी-आधी दर्जन फिल्में हैं, परन्तु दूसरे नम्बर पर पवन सिंह हैं। पवन के साथ मनोज ने 15 फिल्में की हैं।
मनोज टाईगर की फिल्मों की संख्या 100 तक पहुंच गयी है। इन्होंने तरह-तरह की भूमिका निभाई। लेकिन दिनेशलाल की फिल्म निरहुआ रिक्शावाला के बताशा चाचा को दर्शक आज तक नहीं भूलें। इस चरित्र की लोकप्रियता का आलम यह रहा है कि बताशा चाचा के नाम से एक फिल्म प्रदर्शित हो चुकी है और दूसरे का मुहूर्त हो चुका है। अभी पिछले माह प्रदर्शित पटना से पाकिस्तान तक के नेता जी को दर्शकों को सिरआंखों पर बिठा लिया है। और तो और इस फिल्म में उनका बोला गया संवाद वालेकुम प्रणाम तो तकिया कलाम बन गया। ‘दीवाना, प्रेम के रोग भईल, पवन पुरवईया, वीर बलवान, वाह खिलाड़ी वाह सरीखी कई फिल्मे हैं जिसे देखकर मनोज के लिए वाह निकलता ही निकलता है। वह भोजपुरी सिनेमा के सबसे चर्चित और व्यस्त कलाकारों में शुमार हैं।
मनोज सिंह टाईगर एक सर्वगुण सम्पन्न अभिनेता है। वह जितनी चतुराई से हास्य भूमिकाओं में आपको गुदगुदा देते हैं उतनी ही सफाई से नकारात्मक चरित्रों को आत्मसात कर घृणा का पात्र बन जाते हैं। और यही है एक सफल कलधर्मी की पहचान। लेकिन दर्शकों लाख डरायें या सताचें मनोज बतासा चाचा से दामन छुड़ाकर नहीं भाग सकते हैं। यह मनोज के लिए ही नहीं भोजपुरी सिने उद्योग के लिए भी गर्व करने की बात है कि कोई चरित्र इतना जीवंत हो जाये जिसे दर्शंक हमेंशा अपने साथ लिए घूंमें और आजतक घूम रहे हैं।
मनोज टाईगर की प्रतिभा को एक लेखकीय प्रयास में समेटना बड़ा ही दुष्कर कार्य है। इनके खाते में लेखन का भी पन्ना है। वह लगभग एक दर्जन भोजपुरी फिल्म व सवा दर्जन हिंदी नाट्य लेखन कर चुके हैं। राधिका सिंह-उदयनारायण सिंह के सुपुत्र में और भी ढेर सारी खूबिया हैं जिसे एकबारगी उजागर नहीं किया जा सकता, उसके लिए आपको अगले आलेख की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। अभी अभी प्रदर्शित निगाहे नागिन की में देखिए मनोज का नया खलनायक रुप। इसके बाद पवन राजा लेके आजा बैंड बाजा, बलमा तोहरे खातिर, इत्यादि। इमेज के बंधन से मुक्त मनोज टाईगर भोजपुरी सिनेमा के परेश रावल हैं।
प्रस्तुति - उमेश चंदेल udaybhagat@gmail.com
भोजपुरी सिनेमा के सर्वाधिक चर्चित चरित्र अभिनेता मनोज सिंह टाईगर इसी अपवाद श्रेणी में आते हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कला स्नातक होने के बाद आजमगढ़ (उप्र) के तेजस्वी यूवक मनोज को मुम्बई अने की धुन ने आकाशवाणी के इंद्रजीत त्रिपाठी के पीछे लगा दिया।
यहां आकर वह सागर आर्ट (रामानंद सागर की फिल्म निर्माण कम्पनी) में कार्यरत अनिल त्रिपाठी के सम्पर्क में आए। लेकिन वह परजीवी बनकर नहीं जीना चाहते थे, न ही रामभरोसे भटकना उन्हें गंवारा था। तब ‘फिल्मसिटी’ सप्ताहिकी पूरे जोरों पर थी। वहीं मनोज लग गयें। पत्रिका के मालिक सम्पादक सुरेन्द्र गुप्ता के आॅफिस ब्वाय से कार्यालय प्रभारी तक बनें। वहीं से फिल्मी सम्पर्क बनने लगा। मनोज पृथ्वी थियेटर तक जा पहुंचे। रंगमंच पर मंजने के बाद पंचम राग ग्रुप बनाया और 1999 में प्रथम प्रस्तुति हुई: नेताजी का प्लेटफार्म शो। फिर कर्नाटक भवन (माटुंगा) में अंतर्नाद का मंचन हुआ। यह 2001 की बात है। इस प्रेक्षागृह में अभिनेत्री आयशा जुल्का भी पधारीं थीं। आयशा ने मनोज को व्यक्तिगत रुप से बधाई दीं और अपने कार्यालय आने का निमंत्रण दे डाला। आयशा जुल्का ने मनोज को अपना सर्वश्रेष्ठ देने को तैयार कर दिया। यहां मनोज ने आरंभ किया ‘कभी लक कभी चांस’। और कहना न होगा इस नाट्य प्रस्तुति ने मनोज का लक खोल दिया। इस उद्यमी मनोज को दूसरे मनोज का साथ मिल गया। मनोज ओझा का नाटक ‘मांस का रुदन’ मनोज टाईगर को स्थापित करने का नीव बन गया। उसी मनोज ओझा ने जब भोजपुरी फिल्म शुरु की तो मनोट टाईगर को रजत पट पर उतारना ना भूले। भांषा कभी बाधा नहीं बनती। हिन्दी नाटकों का एक समर्थ अभिनेता भोजपुरी सिनेमा के नए चेहरों में अपनी पहचान पुख्ता करने में सफल हो गया। वह फिल्म थी ‘चलत मुसाफिर मोह लियो रे’। इस फिल्म ने दिनेशलाल यादव व मनोज टाईगर की दोस्ती हुई। दोस्ती ऐसी रंग लाई कि दोनों ने लगभग तीन दर्जन फिल्में साथ-साथ कर डाली। मनोज सबके प्रिय हैं लेकिन दिनेश के साथ उनकी सर्वाधिक फिल्में आई। रवि किशन, विराज भट्ट और खेशारी लाल के साथ भी मनोज की आधी-आधी दर्जन फिल्में हैं, परन्तु दूसरे नम्बर पर पवन सिंह हैं। पवन के साथ मनोज ने 15 फिल्में की हैं।
मनोज टाईगर की फिल्मों की संख्या 100 तक पहुंच गयी है। इन्होंने तरह-तरह की भूमिका निभाई। लेकिन दिनेशलाल की फिल्म निरहुआ रिक्शावाला के बताशा चाचा को दर्शक आज तक नहीं भूलें। इस चरित्र की लोकप्रियता का आलम यह रहा है कि बताशा चाचा के नाम से एक फिल्म प्रदर्शित हो चुकी है और दूसरे का मुहूर्त हो चुका है। अभी पिछले माह प्रदर्शित पटना से पाकिस्तान तक के नेता जी को दर्शकों को सिरआंखों पर बिठा लिया है। और तो और इस फिल्म में उनका बोला गया संवाद वालेकुम प्रणाम तो तकिया कलाम बन गया। ‘दीवाना, प्रेम के रोग भईल, पवन पुरवईया, वीर बलवान, वाह खिलाड़ी वाह सरीखी कई फिल्मे हैं जिसे देखकर मनोज के लिए वाह निकलता ही निकलता है। वह भोजपुरी सिनेमा के सबसे चर्चित और व्यस्त कलाकारों में शुमार हैं।
मनोज सिंह टाईगर एक सर्वगुण सम्पन्न अभिनेता है। वह जितनी चतुराई से हास्य भूमिकाओं में आपको गुदगुदा देते हैं उतनी ही सफाई से नकारात्मक चरित्रों को आत्मसात कर घृणा का पात्र बन जाते हैं। और यही है एक सफल कलधर्मी की पहचान। लेकिन दर्शकों लाख डरायें या सताचें मनोज बतासा चाचा से दामन छुड़ाकर नहीं भाग सकते हैं। यह मनोज के लिए ही नहीं भोजपुरी सिने उद्योग के लिए भी गर्व करने की बात है कि कोई चरित्र इतना जीवंत हो जाये जिसे दर्शंक हमेंशा अपने साथ लिए घूंमें और आजतक घूम रहे हैं।
मनोज टाईगर की प्रतिभा को एक लेखकीय प्रयास में समेटना बड़ा ही दुष्कर कार्य है। इनके खाते में लेखन का भी पन्ना है। वह लगभग एक दर्जन भोजपुरी फिल्म व सवा दर्जन हिंदी नाट्य लेखन कर चुके हैं। राधिका सिंह-उदयनारायण सिंह के सुपुत्र में और भी ढेर सारी खूबिया हैं जिसे एकबारगी उजागर नहीं किया जा सकता, उसके लिए आपको अगले आलेख की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। अभी अभी प्रदर्शित निगाहे नागिन की में देखिए मनोज का नया खलनायक रुप। इसके बाद पवन राजा लेके आजा बैंड बाजा, बलमा तोहरे खातिर, इत्यादि। इमेज के बंधन से मुक्त मनोज टाईगर भोजपुरी सिनेमा के परेश रावल हैं।
प्रस्तुति - उमेश चंदेल udaybhagat@gmail.com
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